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अवसरवादी राजनीति

आपका चिंतन
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लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की 48 में से 41 सीटें जीतने वाली भाजपा-शिवसेना गठबंधन राजनीतिक अवसरवादिता की भेंट चढ़ गया. अब तक कम सीटों पर चुनाव लड़ती रही भाजपा लोकसभा चुनाव में मिली भारी जीत से उत्साहित है. लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 23 सीटें जीती थी जबकि शिवसेना 18 सीटें जीतनी में कामयाब हुई थी. यही कारण है कि महाराष्ट्र में भाजपा खुद को शिवसेना से कम नहीं आंक रही है. 25 साल पुराना यह गठबंधन इसलिए टूट गया क्योंकि सीटों की संख्या पर सहमति नहीं बन पाई. इससे पहले जदयू ने भी भाजपा से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ा था. भाजपा के सहयोगी दलों में शिवसेना ही एक ऐसी पार्टी थी जो हिंदुत्व के मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रखती थी. गठबंधन टूटने के बाद शिवसेना ने भाजपा की आलोचना करते हुए उसे पितृपक्ष का कौवा तक कह दिया. वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाला साहब ठाकरे के सम्मान की खातिर शिवसेना पर हमला न करने का ऐलान किया है.

भाजपा-शिवसेना गठबंधन टूटने के चन्द घंटों बाद ही 15 साल पुराना कांग्रेस-राकांपा गठबंधन भी टूट गया. यहाँ भी वही स्थिति थी जहां एनसीपी कांग्रेस द्वारा दी गई सीटों की संख्या से खुश नहीं थी. यह कोई पहला मौका नहीं है जब सत्ता की लालच के कारण इस तरह की स्थिति सामने आई है. सोनिया गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद ही 1999 में शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की थी. पिछले 15 वर्षों से कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन महाराष्ट्र में सरकार चला रही थी परंतु यह गठबंधन टूटते के साथ ही यह भी लगभग तय हो गया है कि इस बार दोनों में से कोई भी दल अपने बूते सत्ता में नहीं आ सकती, इसका एक कारण लोकसभा चुनाव में दोनों दलों द्वारा किया गया खराब प्रदर्शन भी है. अब महाराष्ट्र में पांच कोणीय मुकाबला होने की संभावना है इसमें पाँचवी पार्टी राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना है. बाला साहब ठाकरे द्वारा उद्धव ठाकरे को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी चुने जाने के बाद ही राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बनाई थी. पांच प्रमुख पार्टियों के अलग -अलग चुनाव लड़ने से इसकी संभावना भी काफी कम है कि किसी एक दल को बहुमत मिले. इस स्थिति मे चुनाव बाद गठबंधन होने की पूरी संभावना है.

एक अस्सी का दशक था जब कांग्रेस बनाम अन्य पार्टियाँ हुआ करती थी उस समय भारतीय राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व था परंतु आज स्थिति अलग है. एक समय 20 से भी ज्यादा दलों के सहयोग से सरकार बनाने वाली भाजपा के सहयोगियों की संख्या घटती ही जा रही है. जदयू और शिवसेना के गठबंधन तोड़ने के बाद अब शिरोमणि अकाली दल ही एक ऐसी पार्टी है जो पिछले कई वर्षों से भाजपा के साथ खड़ी है. अटल-आडवाणी युग में जहां भाजपा सहयोगी दलों पर निर्भर रहती थी वहीं अब समय बदल गया है. अब भाजपा में मोदी-शाह युग की शुरुआत हो चुकी है जो कड़े फैसले लेने से नहीं हिचकिचाते.

वर्तमान में भाजपा के पास महाराष्ट्र में नितिन गडकरी को छोड़ कोई बड़ा नेता नहीं है. नितिन गडकरी अभी केन्द्र की राजनीति में व्यस्त है. भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद के लिए कोई बड़ा उम्मीदवार नहीं है. वहीं शिवसेना की तरफ से निश्चित रूप से उद्धव ठाकरे ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. महाराष्ट्र के दो बड़े नेता शिवसेना के बाला साहब ठाकरे और भाजपा के गोपीनाथ मुंडे दिवंगत हो चुके है. यदि गोपीनाथ मुंडे आज जीवित होते तो निश्चित रूप से वह भाजपा के लिए मुख्यमंत्री के तौर पर पहली पसंद होते. अभी हाल ही में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इशारा दिया है कि दिवंगत गोपीनाथ मुंडे की पुत्री पंकजा मुंडे मुख्यमंत्री पद की दावेदार हो सकती है. हालांकि यह तो आने वाला वक्त बताएगा कि महाराष्ट्र की जनता क्या जनादेश देती है, परंतु यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव बाद किस तरह के राजनीतिक समीकरण बनते है. बड़ा सवाल यह है कि क्या चुनाव बाद भाजपा और शिवसेना फिर से गठबंधन करेंगे या एनसीपी भाजपा के शरण में जाएगी?

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