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क्या एक होगा जनता परिवार?

आपका चिंतन
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भाजपा की केन्द्र में पूर्ण बहुमत और बिना विपक्ष की सरकार तथा राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में मिली लगातार जीत ने कई क्षेत्रीय दलों को एक साथ आने पर मजबूर कर दिया है. कुछ दिन पूर्व सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के दिल्ली स्थित निवास पर हुए जनता परिवार के छह दलों के नेताओं की बैठक ने इस बात को साबित भी किया है. इन छह पार्टियों में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी, बिहार की सत्तारूढ़ जनता दल (युनाइटेड), लालू प्रसाद यादव की राजद, पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा की जनता दल (सेक्युलर), हरियाणा की इंडियन नैशनल लोक दल तथा कमल मोरारका की समाजवादी जनता पार्टी है.

वर्तमान सरकार में विपक्ष के नेता का पद किसी पार्टी को नहीं मिला है और किसी एक दल के पास संख्या बल भी नहीं है कि संवैधानिक रूप से इसका दावा कर सके. प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के भी सीटों की कुल संख्या केवल 44 ही है इसलिये जनता परिवार के ये दल चाहते है कि एकजुट होकर अगले संसद सत्र में सरकार को घेरा जाए. इन दलों के नेताओं की बैठक से कई राजनीतिक समीकरण बदलने के आसार नजर आ रहे है. इन दलों के नेताओं ने भविष्य में अपने दलों का एक पार्टी में विलय करने की संभावना से इंकार नहीं किया है. नीतीश कुमार ने तो यहां तक कह दिया है कि जनता परिवार की ये पार्टियाँ भविष्य में एक दल के रूप में भी सामने आ सकती है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इन दलों के साथ आने की असली वजह लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार है. भाजपा की सफलता ने इन दलों को अपनी साख बचाने के लिए ऐसे फैसले लेने पर विवश कर दिया है. हालांकि यदि इन दलों की बाद की जाए तो इनमें से लगभग सभी दलों की पैठ अपने अपने राज्यों में ही है. इनमें से ऐसा कोई दल नही है जिसकी लोकप्रियता एक से अधिक राज्यों में है. ऐसी स्थिति में इनके एक साथ चुनाव लड़ने से कोई बड़ा फर्क पड़ेगा इसकी संभावना बहुत कम है क्योंकि इस स्थिति में ये दल चुनाव पूर्व एक साथ आए या चुनाव बाद स्थिति लगभग एक समान ही रहने वाली है.

जनता परिवार के इन दलों के साथ आने से उस दौर की याद जरूर आ जाती है जब इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ कई राजनीतिक दल एक साथ मिल गये थे. आज वही स्थिति नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार सामने है. बड़ा सवाल यह है कि क्या ये दल 2019 का आम चुनाव एक साथ मिलकर लड़ेंगे? क्या लालू प्रसाद यादव कांग्रेस के साथ न जाकर मुलायम सिंह यादव का हाथ थामेंगे? क्या ममता बनर्जी और नवीन पटनायक भी इस गठबंधन का हिस्सा बनेंगे? इन सबके बाद भी नेतृत्व तथा सीट बटवारे को लेकर ऐसे कई सवाल अभी आने बाकी है जो आने वाले समय इन दलों के एकजूट होने में रुकावट डाल सकते है.

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