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आतंकवाद के खिलाफ पाक की दोहरी नीति

आपका चिंतन
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पाकिस्तान के पेशावर में तालिबान द्वारा किए गए हमले में हुए 132 बच्चों समेत कुल 145 मौत ने पूरे विश्व को आतंकवाद के खिलाफ एक साथ खड़े होने तथा साथ मिलकर लड़ने के फैसले को एक बार फिर कटघरे में रख दिया है. पेशावर के एक आर्मी स्कूल में हुए इस हमले ने एक बार फिर भय का माहौल बना दिया है. एक माँ-बाप यह सोचने पर मजबूर हो गए है कि क्या स्कूल में भी उनका बचा सुरक्षित है?

तहरीक-ए-तालिबान ने इस घटना की जिम्मेदारी ली है. छ्ह तालिबानी आत्मघाती आतंकियों द्वारा किया गया यह संहार मानवता को शर्मसार करने वाला है. हालांकि उसका यह कहना है कि पाकिस्तान की आर्मी द्वारा पूर्वी वजीरिस्तान में तालिबानियों पर हुए हमलों की यह प्रतिक्रिया है. गौरतलब है कि पाकिस्तान की आर्मी ने करीब 1850 तालिबानियों तथा उसके समर्थकों को पूर्वी वजीरिस्तान में मार गिराया है. निश्चित रूप से यह तालिबान द्वारा किया गया एक कायरतापूर्ण कार्यवाही है. आज पाकिस्तान में तालिबान की जो स्थिति है उसके लिए निश्चित रूप से पाकिस्तान ही जिम्मेदार है. जब सारी दुनिया तालिबान के खिलाफ थी तब पाकिस्तान उसके साथ खड़ा था. पाकिस्तान ने ही तालिबान के फलने-फूलने में उसकी मदद की थी. पाकिस्तान जिस तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता देना चाहता था, आज वही तालिबान उसका दुश्मन बन बैठा है.

आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पेशावर हमले के 48 घंटे बाद ही पाकिस्तान ही एक अदालत ने मुम्बई हमले के आरोपी जकी-उर रहमान लखवी को जमानत दे दी. आतंक के खिलाफ पाकिस्तान की दोहरी नीति किसी से छिपी नहीं है. आज भी लश्कर-ए-तायबा और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकवादी संगठनों पर पाकिस्तान की तरफ से कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. मुम्बई हमले का मास्टर माइंड हाफ़िज़ सईद भी पाकिस्तान में आज़ाद घूम रहा है. यहाँ तक की पाकिस्तान सरकार ने कुछ दिन पहले हाफ़िज़ सईद के लिए दो ट्रेनों की भी व्यवस्था की थी जिसके जरिए उसने विभिन्न क्षेत्रों के युवाओं को आतंक की ट्रैनिंग भी दी. पाकिस्तान सरकार की सेवा पाने वाला यह वही हाफ़िज़ सईद है जिसने मुम्बई हमले का पूरा षड्यंत्र रचा था, जिसमें 164 निर्दोष लोगों की जाने गई थी. यह वही हाफ़िज़ सईद है जिसपर अमेरिका ने 1 करोड़ डॉलर का इनाम रखा है. पाकिस्तान के इस रवैये से हिलेरी क्लिंटन की एक बात याद आती है जिसमें उन्होंने कहा था “यू कॅंट कीप स्नेक्स इन योर बॅकयार्ड एंड एक्सपेक्ट देम ओन्ली टू बाइट योर नेबर्स”. जिसका मतलब है कि आप साँप को अपने पीठ पर रखकर यह उम्मीद नहीं कर सकते कि यह केवल आपके पड़ोसी को ही कटेगा.

क्या पाकिस्तान इस घटना के बाद भी आतंकवाद को अच्छा या बुरा के रूप में देखता रहेगा? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज ऐसे कई आतंकवादी संगठन पाकिस्तान में मौजूद हैं जिसे वहां की सरकार ने कभी गलत नहीं माना है. यहाँ तक की हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकवादी संगठन ने तो पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर कई जॉइंट ऑपरेशन भी किए है. पाकिस्तान कश्मीर घाटी में भी आतंकवाद फैलाने का काम करता रहा है. कश्मीर के युवाओं को भड़काने में आतंकियों की भूमिका भी किसी से छिपी नहीं है. बड़ा सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान इस घटना के बाद भी न सिर्फ तालिबान के खिलाफ बल्कि जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तायबा जैसे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ भी गंभीरता से कोई कदम उठाएगा? क्या पाकिस्तान मुम्बई हमलों के गुनाहगार हफ़ीज़ सईद और जकी-उर रहमान लखवी को सजा देगा? क्या आतंक से खिलाफ पाकिस्तान की दोहरी नीति समाप्त होगी?

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