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कश्मीर में अटका मोदी का अश्वमेध

आपका चिंतन
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जम्मू-कश्मीर के चुनावी नतीजों से एक बात निकलकर अवश्य सामने आई है वह है वोटों के ध्रवीकरण की. एक तरफ जहाँ जम्मू के हिन्दू बहुल इलाकों में भाजपा हावी रही वहीं कश्मीर घाटी में पीडीपी का दबदबा रहा. जम्मू-कश्मीर में भाजपा को सबसे अधिक वोट मिले इसके बावजूद वह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. भाजपा का विजयरथ पिछले साल दिसंबर में ही आरंभ हो गया था जब उसे राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में शानदार जीत मिली थी. इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी भाजपा अपने बूते पूर्ण बहुमत पाने में कामयाब रही. भाजपा का विजयरथ यहीं नहीं रुका बल्कि इसके बाद वह महाराष्ट्र और हरियाणा की सत्ता भी कांग्रेस से छीनने में सफल रही. अब झारखण्ड में भी भाजपा गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिल चुका है परंतु कश्मीर घाटी में भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन ने इस विजय अभियान को रोक दिया.

नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद कश्मीर का कई बार दौरा किया. यहाँ तक की मोदी ने दिवाली भी कश्मीर में बाढ़ पीड़ितों के साथ बिताई. चुनाव प्रचार के दौरान मोदी की श्रीनगर रैली में उमड़ी भीड़ से यह उम्मीद जताई जा रही थी कि भाजपा घाटी में एक या दो सीट जीतने में कामयाब होगी परंतु ऐसा नहीं हो सका यहाँ तक भी चुनाव के दौरान कश्मीर में भाजपा का चेहरा रही हीना भट्ट भी चुनाव हार गई. इससे यह भी साफ हो गया कि भाजपा को लेकर अभी भी मुसलमानों में डर बरकरार है. घाटी में भाजपा के बूरे प्रदर्शन का एक कारण चुनाव के दौरान हुई कुछ साम्प्रदायिक बयानबाजी भी रही चाहे वह साक्षी महाराज का विवादित बयान हो या योगी आदित्यनाथ का. रही-सही कसर कुछ हिन्दू संगठनों द्वारा किये गए धर्मांतरण तथा घर-वापसी जैसे अभियान ने पूरी कर दी. प्रधानमंत्री सबका साथ और सबका विकास की बात करते है परंतु अक्सर कुछ नेता इस तरह के बयान देकर भाजपा को बैकफूट पर धकेल देते है. बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा इस तरह के नेताओं पर नकेल कसकर मुसलमानों को भयमुक्त कर पाएगी और क्या भाजपा आने वाले समय में घाटी के लोगों का दिल जीत पाएगी?

जम्मू-कश्मीर के खंडित जनादेश से अब कई तरह के राजनीतिक समीकरण सामने आ रहे है. भाजपा को 25, पीडीपी को 28, कांग्रेस को 12, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 तथा अन्य को 7 सीटें मिली है. उमर अब्दुल्ला ने यह इशारा कर दिया है कि वह पीडीपी को समर्थन देने के लिए तैयार है. परंतु बड़ा सवाल यह है कि क्या पीडीपी उस पार्टी के साथ गठबंधन करेगी जिसके विरुद्ध उसने पूरा चुनाव अभियान चलाया. एक और विकल्प पीडीपी-भाजपा गठबंधन की है परंतु इसमें मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर विवाद हो सकता है. पीडीपी के पास जो एक अतिरिक्त विकल्प है वह है कांग्रेस से समर्थन लेने का क्योंकि कांग्रेस ने समर्थन देने की पेशकश कर दी है. परंतु इसमें एक कठिनाई यह है कि फिर अन्य 4 का समर्थन चाहिए होगा जिसमें से दो ऐसे विधायक है जिन्हें चुनाव के दौरान उमर अब्दुल्ला का समर्थन प्राप्त था और दो विधायक सज्जाद लोन की पीपल्स कॉन्फ्रेंस के है जो पिछले कुछ दिनों से भाजपा के करीबी दिखाई दे रहे है. ऐसी स्थिति में पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन की सरकार तभी बन सकती है जब सज्जाद लोन उन्हें समर्थन दें. भाजपा-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन भी एक विकल्प है जिसमें भाजपा समर्थन के बदले उमर अब्दुल्ला को राज्यसभा भेजकर उन्हें कोई मंत्रालय दे सकता है. कुल मिलकर देखा जाए तो यह बहुत जल्द ही एक बार फिर साबित होने वाला है कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता है.

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